अतिथि भवन में अभिव्रत अपने नाना जी और नानी माँ की ओर बस टकटकी लगाए देख रहे थे और उनकी खातिरदारी के लिए उत्सुक थे।
उनके वहां पहुंचने के कुछ ही क्षणों के बाद कुछ सेवक बहुत से संदूक और सामान लिए वहां पहुंचे और वो सामान महारानी के आदेश पर अतिथि भवन में रख कर एकाएक जाने लगे। अभिव्रत के मन में जिज्ञासा थी उस सामान को लेकर किंतु सब शाही कपड़ो से ढका होने के कारण वो कुछ देख न पाए। महारानी ये सब देख कर मन ही मन मुसकाई।
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